प्राचीनकाल में जब गाँव-देहात हुआ करते थे, तब पूरा गाँव ही परिवार होता था। त्योहार, विशेषकर दिवाली और होली के दिन तो सारा घर ही व्यस्त होता था। घर की स्त्रियाँ तरह-तरह के व्यंजन और मिठाई बनाने में व्यस्त होती थीं और पुरुष मिठाइयों का पार्सल गाँव भर में बाँटने में व्यस्त होते थे।
उस जमाने में ट्रक और बस ड्राइवर इतने ईमानदार हुआ करते थे, कि किसी दूर गाँव या शहर के रिश्तेदार को मिठाई या चिट्ठी भिजवानी होती थी, तो ड्राइवर को पकड़ा देते थे और वह सकुशल उन तक पहुंचा देता था।
लेकिन अब हम आधुनिक हो गए हैं, अब लोग मिठाइयाँ बनाना तो दूर, भिजवाना भी अपनी शान के विरुद्ध समझते हैं। अब तो केवल मिठाइयों की तस्वीरें भेजी जाती हैं व्हाट्सएप और मेसेंजर के माध्यम से।
जल्दी ही वह दिन भी आएगा, जब किसी भूखे को रोटी भी स्केन करके व्हाट्सएप के द्वारा भेजी जाएगी और वह जवाब में लिखेगा, “Very Nice…Thank you so much !” और यही संदेश उसका अंतिम संदेश होगा, क्योंकि उसके बाद उसके ज़िंदा बचे रहने की कोई गारंटी नहीं।